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मंगलवार, 19 अगस्त 2014

उर्दू उपन्यास के सौ साल/रंजन जैदी

उर्दू उपन्यास के सौ साल/रंजन जैदी

      यह अभिव्यक्ति का ऐसा माध्यम बना जिसने सर सय्यद के तत्कालीन सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक आन्दोलन को एक भाषा और बोलने की शक्ति प्रदान की. इस आन्दोलन की शृंखला में रतन नाथ सरशार, ऐतिहासिक उपन्यास लिखने वाले उपन्यासकार अब्दुल हलीम शरर, और मुंशी प्रेमचंद अग्रिणी लेखकों  में गिने जाने लगे
    १९४८ में फिक्र तौन्सवीं का छठा  दरिया भारत-पाक विभाजन के दौरान लिखी गयी उनकी एक ऐसी थी जिसमें रोज़ की सम्प्रदियिक हिंसा, गमन और हिन्दू-मुस्लिम दंगों का रोजनामचा दर्ज किया गया था. इसे मैंने पहली बार हिंदी में अनूदित कर हिंदी मासिक पत्रिका  गंगा (संपादक:कमलेश्वर) में दिया जिसे धारावाहिक रूप में प्रकाशित किया गया.
चांदनी बेगम
डायरी
    अब्दुल्ला हुसैन का उपन्यास उदास नस्लें हालाँकि १९६२  में प्रकाश में आया था लेकिन उसमें अंग्रेजी साम्राज्य के षड्यंत्रों, अंग्रेजों के विरुद्ध आक्रोश, भारतीय आज़ादी के आन्दोलन की पृष्ठभूमि  और अनेक ऐसे आयामों का चित्रण प्रस्तुत किया गया है कि वह एक क्लासिक की हैसियत हासिल करने में कामियाब होता नज़र आता है
    १९६९ में हयातुल्लाह अंसारी का एक वृहद उपन्यास लहू के फूल का प्रकाशन हुआ जो आज़ादी से पूर्व के हिन्दुतान में रह रहे दलितों की समस्याओं पर आधारित था.

शनिवार, 19 जुलाई 2014

ग़ज़ल / दबीर सीतापुरी

ग़ज़ल / दबीर सीतापुरी


किरदार को मेराज पर पहुँचाओ तो जानें। 
इक क़ौम में माबूद भी कहलाओ तो जानें।
माना  बड़ा क़ाबू है ज़बाँ और मकाँ पर,
बे हर्फ़ अलिफ़ गुफ़्तगू फ़रमाओ तो जानें।
दुश्मन हो तहे-तेग़ बहुत-ख़ूब मगर हाँ,
अब ऐसे में सीने से उत्तर आओ तो जानेँ। 
बाज़र्फ था क़ातिल ये कहे ख्वाहारे-मक़तूल,
यूं जंग के असबाब  बजा लाओ तो जानें।
काबे में विलादत हो तो मस्जिद में शहादत,
यूं आओ तो इस तरह चले जाओ तो जानें।
 प्रस्तुति : हसन इमाम ज़ैदी , दुबई 
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Kirdar Ko meraj per pahuchao to Jane
Ek qoum me mabood bhi kahlao to Jane

Mana bada qabu hai zuban aur bayan per
Be Harfe alif guftugu farmao to Jane

Dushman ho tahey tegh bahot khoob magar Han
Ab aise me seene se utar aao to Jane

BaZarf tha qatil ye kahe qwahare maqtool
Yoon Jung ke aadab baja lao to Jane

Kabay me Wiadat ho to masjid me shahadat
Yoon aao to is tarah chale jao to Jane

-Dabeer Sitapuri