Ghazal/ख्वाब /डॉ.रंजन ज़ैदी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Ghazal/ख्वाब /डॉ.रंजन ज़ैदी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

ग़ज़ल/ख्वाब....... /डॉ. रंजन ज़ैदी*


ग़ज़ल/तेरी कशिश में/ डॉ.रंजन ज़ैदी

लफ़्ज़ों का बाज़ार  सजा है, बेच ले   हर   मौसम  का  ख्वाब.
हुनरवरों    का    ये    मेला    है, संभल  के लेना- देना ख्वाब.

नन्हीं - नन्हीं  डिबियां रखले, रखले  उनमें  रस्मो - रिवाज,
उम्र की गलियां कब सो जाएँ, आजाये कब मौत का   ख्वाब.

ख्वाबों  की  ताबीर  पे  हम  तनक़ीद को मोहलत दे तो दें,
लेकिन ऐ दिल इन आँखों से देखें  कैसे, क्या - क्या  ख्वाब.

शजर-शजर से पूछ  न  लेना   हिज्र के  पत्तों  का  मौसम,
डरा-डरा  है शाख  का  पत्ता,  डरा  है  हर  पेवस्ता  ख्वाब.

आंसू,  यादें   खंडहर-खंडहर,  ज़ख़्मी   साये,    जलती   धूप,
हिज्र में सोना,वस्ल में जगना, अब न दिखा यख़बस्ता  ख्वाब.
Copyright :डॉ. रंजन  ज़ैदी*