कितनी दुनिया बदल गई है
ज़ैदी ज़ुहैर अहमद*(Ranjan zaidi)
दुनिया भी तो बदल गई है।
बेटी चलना सीख गई है।
बेटी चलना सीख गई है।
कच्चे रस्ते अपने कब थे,
बारिश पूछती रहती है।
बुढ़िया उसमें रहती है।
चांदनी रात से छागल भर ले,
आँख
में कबसे नींद भरी है। घर में क़ब्रें ही क़ब्रें थीं,
रूह सभी ग़म झेल चुकी है।
खुद को ढूँढूँ जाने कब से,
मुझको दुनिया ढूंढ
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