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सोमवार, 13 अक्तूबर 2014

दर्द के झोंके धीरे-धीरे/डॉ. रंजन ज़ैदी*,

ग़ज़ल/ दर्द के झोंके धीरे-धीरे/डॉ.रंजन ज़ैदी*,   
खिड़की खोले झाँक  रहा थाकबसे पीला-पीला  चाँद .                     
दश्त में तारे शबनम-शबनमउसमें ही जा बैठा  चाँद

चाँद की  किरनें   धीरे-धीरेनीम के पेड़ पे जा    बैठीं,  
दूर उफ़ुक़ में डूब रहा है, मुफलिस की उम्मीद का चाँद
  
बारी-बारी टूट गए  सब, चूड़ीकंगन और अरमान,                     
फिर भी आस अभी  है बाकी, रात को दस्तक देगा  चाँद

दर्द  के   झोंके   धीरे-धीरे  उसको   कुएं   तक  ले  आये,   
उसने  झाँक  के  देखा    दिलपानी  में  बैठा था चाँद.

बादे-सबा  खुशबू  की  छागल  लेकर  तू  गुलशन  में जा.
वक्ते-सहर  जब  लौटके आये, साथ में  लेकर आना चाँद.
Copyright :डॉ.रंजन  ज़ैदी *