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सोमवार, 13 अक्तूबर 2014

डॉ. रंजन ज़ैदी के फुटकर अशआर

डॉ. रंजन  ज़ैदी * के फुटकर अशआर-

जिस्म के कोई से दरिया में चलो बह जाएँ,
दिल समंदर है मेरे दोस्त वहीं मिल लेना।

मत जा बुलंदियों पे बहुत खौफ खायेगा,
तन्हाइयों का बोझ भी ढोया  न जायेगा।

चर्ख से जब भी कोई तारा  टूटा तो हम समझे ये,
मेरा ख़ालिक़ ये कहता है मांग दुआएं जितनी मांग।

कोई न ले के आएगा आंसू की छागलें, 
कब तक  जलाके दिल को चराग़ाँ करोगे तुम?

धूप  की सियासत का क्यों शिकार होते हो?
बादलों पे बैठे हो ये बरस भी सकते हैं।

घुप अँधियारा सीला जीवन तन्हाई के हाले  हैं,
आकर देख बहुरिया घर के हर कोने में जाले हैं।

दिए जलाके कोई इंतज़ार करता है,
यक़ीन है के सितारों के पार है कोई।

वोट तो तुमको दे देंगे हम लेकिन इतना याद रहे,
आँख मिलाना पड़ सकता है सत्ता के गलियारे में.
डॉ. रंजन  ज़ैदी*