इंतज़ार हुसैन |
تہذیبوں کا پڑاؤ- ادب کا انقلاب URL://www.facebook.com/Dayare-URDU-103457267668234/ Editor : Dr.Zuhair Ahmad Zaidi (alias RANJAN ZAIDI)
बुधवार, 6 जुलाई 2016
मेरी नई पुस्तक. से -/2 रंजन ज़ैदी
Who is who
Name:Z.A.Zaidi 'Ranjan Zaidi'
Father;(Late) Dr.A.A.Zaidi; Birth; Badi,Sitapur U.P.INDIA; Journalist &; Author> Educ;M.A.Hindi,Urdu,Ph-D in Hindi; Works; Written 14 books,Participated in seminars,workshops>
Pub;six short stories collection (Hindi),Five Novel,Two Edited Books, Books for Women issues and five others book;:
Latest Books;& Hindi Novel; Released,
Film & amp; musical album (song in 15 languages.Shreya Ghoshal,Usha Utthup with others, Music; Late Adesh Srivastav, Bol; Ab humko age badhna hai…) for video,serials, documentaries & several papers/reviews/published journals/magazines/news papers>
Joint Director Media (Retired,Editor; SAMAJ KALYA, Hindi Monthly,CSWB Govt.of India;> Awards;(1985);Delhi Hindi Academy(1985-86),journalism(1991)....
https://zaidi.ranjan20@gmail.com
Address; Ashiyna Greens,Indirapuram Ghaziabad-201014 UP Bharat,
सोमवार, 4 जुलाई 2016
मेरी नई पुस्तक. 'उपन्यास के कालचक्र' से/-रंजन ज़ैदी
मेरी नई पुस्तक. 'उपन्यास के कालचक्र' से) -रंजन ज़ैदी
उपन्यास, अपने समय-काल का
आईना हुआ करता
है जिसे हम
अपने समय का
सामाजिक, राजनीतिक व ऐतिहासिक
दस्तावेज़ भी कह
सकते हैं. वह
इतिहास नहीं होता
है, लेकिन दीवार
पर टंगी ऐतिहासिक
पेंटिंग में ज़िन्दगी
के होने का
अहसास अवश्य पैदा
कर देता है.
हमारे
सामने भारत-पाक
विभाजन की पीड़ा
को दर्शाती पेंटिंग
हमें अतीत के
भूखंडों पर पहुंचाती
है तो अकस्मात्
कानों में भारत-पाक विभाजन
के शिकार डेढ़
करोड़ हिन्दू-मुस्लिम
महाजरीनों की चीखें
गूंजने लग जाती
हैं. वहां तब
इतिहास गवाही तो देता
है लेकिन उपन्यास
अपने समय को
सामने ला खड़ा
कर देता है.
ऐसी चीत्कारें मैंने
कराची के सफर
के दौरान जिना-पार्क कब्रिस्तान में
सुनी हैं. जब
पाठकों के सामने
उपन्यास 'बस्ती' (इंतज़ार हुसैन)
प्रकाशित होकर आया
तो इतिहासकारों को
पता चला कि
महाजरों के कैम्पों
में कितनी अनार्की
फैली हुई थी,
इंसान कितना बड़ा
दरिंदा बन चुका
था, राज़ खुला
कि इंसान लाशों से भी
बलात्कार कर सकता है.
इतिहास
बताने की स्थिति
में नहीं था
कि जो बवंडर
आया था उसने
नए बदलते परीवश
में भारत-पाक
दोनों मुल्कों के
इंसान को आर्थिक,
सामाजिक और व्यवसायिक
रूप से विकृत
करके रख दिया
था, जो कुछ
नहीं था, वह
महलों में पहुँच
गया था, जो
बहुत कुछ था
वह झुग्गी में
सिमट गया था.
अस्तित्व के स्थायित्व
की लड़ाई ने
झीने पर्दों की
ओट में मानवीय
स्वभाव के हर
आयाम की कीमत
लगाकर बेचने वाले
सौदे के रूप
में फुटपाथ तक
पहुंचा दी थी.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश
का ज़मींदार लाहौर
या कराची पहुंचकर
रिक्शे की गद्दी
पर तो बैठ
गया लेकिन वह
अपने वतन में
रहकर अपनी तथाकथित
प्रजा के साथ
आज़ाद भारत में
खुली सांस लेने
के लिए तैयार
नहीं हुआ क्योंकि
वह खुली आँखों
में रहने-बसने
वाली नींद में
दिखाई देते रहने
वाले ज़मींदार को
शर्मिंदा नहीं होने
देना चाहता था.
इसलिए 'चलता मुसाफिर'
(अल्ताफ़ फ़ातिमा, उर्दू उपन्यासकार,लाहौर) अपनी रूह
को अपने वतन
में छोड़कर पाकिस्तान
चला तो गया
लेकिन आज तक
वह अपनी जड़ों
से उखड़ नहीं
पाया. वह आज
भी पाकिस्तान में
मुहाजिर बनकर ज़िंदा
रहने के लिए
अभिशप्त है. अपने
समय का इतिहासकार
इस तरह की
त्रासद स्थितियों के संजाल
का रहस्योद्घाटन करने
में असमर्थ था,
लेकिन उपन्यासकार को
अपने पात्रों के
साथ परदे के
इस पार आने
में कोई संकोच
नहीं था. वह
यशपाल (झूठा सच)
के पास भी
पहुंचा तो भीष्म
साहनी (तमस) के
पास भी, इंतज़ार
हुसैन (बस्ती) के पास
पहुंचा तो कुर्रतुलऐन
हैदर ('आग का
दरिया') के पास
भी. Cont./-2
Who is who
Name:Z.A.Zaidi 'Ranjan Zaidi'
Father;(Late) Dr.A.A.Zaidi; Birth; Badi,Sitapur U.P.INDIA; Journalist &; Author> Educ;M.A.Hindi,Urdu,Ph-D in Hindi; Works; Written 14 books,Participated in seminars,workshops>
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