सोमवार, 21 जुलाई 2014

ग़ज़ल / हैरान कर मुझे..../ अफ़ज़ाल आजिज़ (पाकिस्तान)

ग़ज़ल / अफ़ज़ाल आजिज़ (पाकिस्तान)

हैरान कर मुझे मिरी आँखों में ख्वाब रख। 
अपने लबो-रुखसार के   सारे गुलाब रख। 

कितने सितम किये हैं लगाई है कितनी आग,
तू अपने ज़ुल्मो-जोर का कुछ तो हिसाब रख। 

थोड़ी सी कम तो कर मिरी आँखों की तिशनगी,
परदा उठा के दीद का जामे-शराब रख। 

घबराके गिर न जाएँ फलक से मओ-नुजूम,
इतना अयां न हो ज़रा रुख पे नक़ाब रख। 

अपनों की चाहतें नहीं मंज़ूर गर तुझे,
गैरों से मेल-जोल में कुछ तो हिजाब रख। 

आजिज़ से गर लगाव नहीं तुझको ना-सही,
लेकिन ज़रा संभाल के हुस्नो-शबाब रख।
'अख़बारे-जहाँ' उर्दू, कराची से साभार।

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