ग़ज़ल / अफ़ज़ाल आजिज़ (पाकिस्तान)
हैरान कर मुझे मिरी आँखों में ख्वाब रख।
अपने लबो-रुखसार के सारे गुलाब रख।
कितने सितम किये हैं लगाई है कितनी आग,
तू अपने ज़ुल्मो-जोर का कुछ तो हिसाब रख।
थोड़ी सी कम तो कर मिरी आँखों की तिशनगी,
परदा उठा के दीद का जामे-शराब रख।
घबराके गिर न जाएँ फलक से मओ-नुजूम,
इतना अयां न हो ज़रा रुख पे नक़ाब रख।
अपनों की चाहतें नहीं मंज़ूर गर तुझे,
गैरों से मेल-जोल में कुछ तो हिजाब रख।
आजिज़ से गर लगाव नहीं तुझको ना-सही,
लेकिन ज़रा संभाल के हुस्नो-शबाब रख।
'अख़बारे-जहाँ' उर्दू, कराची से साभार।
हैरान कर मुझे मिरी आँखों में ख्वाब रख।
अपने लबो-रुखसार के सारे गुलाब रख।
कितने सितम किये हैं लगाई है कितनी आग,
तू अपने ज़ुल्मो-जोर का कुछ तो हिसाब रख।
थोड़ी सी कम तो कर मिरी आँखों की तिशनगी,
परदा उठा के दीद का जामे-शराब रख।
घबराके गिर न जाएँ फलक से मओ-नुजूम,
इतना अयां न हो ज़रा रुख पे नक़ाब रख।
अपनों की चाहतें नहीं मंज़ूर गर तुझे,
गैरों से मेल-जोल में कुछ तो हिजाब रख।
आजिज़ से गर लगाव नहीं तुझको ना-सही,
लेकिन ज़रा संभाल के हुस्नो-शबाब रख।
'अख़बारे-जहाँ' उर्दू, कराची से साभार।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
alpst-politics.blogspot.com, community में उर्दू-साहित्य का ब्लॉग है. लगातार काम कर रहा है. Dayaare URDU.blogspot.com MAJLIS community में उर्दू की स्तरीय व शोधपरक रचनाएँ आमंत्रित हैं. आप अपने सुझाव, सूचना, शिकायत या आलेख zaidi.ranjan20@gmail.com पर भेज सकते हैं.